हर रोज
मैं मिलता हूँ एक अजनबी से
जो मेरे अंदर है
जो मुझे सावधान करता है
किसी अजनबी से मिलने के लिए,
जो मुझे बदल सकता है !
मेरे शरीर पर जो कपड़े हैं उसे
जो घड़ी है
जो चप्पल/जूते हैं
जो कड़ा है
आंखों पर जो चश्में है
गले में जो आस्था की हार है
हर एक चीज को..
लेकिन!
फिर मैं सोचता हूँ
इस अजनबी से मैं निपट लूँगा,
लेकिन उस अजनबी का
क्या जो बाहर घूम रहा है।
जिसकी नज़र हर वक़्त मुझपर टिकी रहती है।
मैं मिलता हूँ एक अजनबी से
जो मेरे अंदर है
जो मुझे सावधान करता है
किसी अजनबी से मिलने के लिए,
जो मुझे बदल सकता है !
मेरे शरीर पर जो कपड़े हैं उसे
जो घड़ी है
जो चप्पल/जूते हैं
जो कड़ा है
आंखों पर जो चश्में है
गले में जो आस्था की हार है
हर एक चीज को..
लेकिन!
फिर मैं सोचता हूँ
इस अजनबी से मैं निपट लूँगा,
लेकिन उस अजनबी का
क्या जो बाहर घूम रहा है।
जिसकी नज़र हर वक़्त मुझपर टिकी रहती है।
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