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शुक्रवार, अगस्त 12, 2011

हिंदी भाषा एवं नागरी लिपि का मानकीकरण

लिपि न हो तो किसी भी भाषा का रूप स्थिर नहीं हो सकता | बोलचाल की भाषा में उच्चारण, व्याकरण और वाक्ययोजन में विविधता रहती है | ज्यों-ज्यों भाषा के लिखित रूप का विस्तार होता है, त्यों-त्यों उसमें एकरूपता का तकाज़ा बढ़ता जाता है| हिंदी के मानकीकरण में वर्तनी का मुद्दा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और इसका सीधा सम्बन्ध लिपि से है| देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता के कारण हमारी वर्तनीगत समस्याएँ अधिकांशतः सुलझ गई है | इसके लिए नियम निर्धारित हो सके हैं| व्याकरण के मानकीकरण में भी देवनागरी लिपि ने अपना योग दिया है| पहली बात यह है की व्याकरण प्रायः लिखित भाषा का होता है| व्याकरण के सारे नियम एक साथ लिपिबद्ध होकर सामने आ जाते हैं| उदाहरण स्वरुप पुलिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए सभी प्रत्ययों को एक जगह लखकर समझ-समझा सकते हैं कि-नी, आनी, इया, इन, आदि स्त्री प्रत्यय हैं, जैसे मोरनी, नौकरानी, चिड़िया, धोबिन में | हम क्रिया की सारी कालरचना लिपिबद्ध करके एक पृष्ठ पर या ब्लैकबोर्ड पर दिखा सकते हैं| ऐसे में समझना और याद करना सुगम हो जाता है| फिर भी लिपिबद्ध कर लेने पर ही हम समय समय पर निरिक्षण कर सकते हैं कि किन व्याकरणिक कोटियों में मानक रूप स्थिर हो गए हैं और किन में शेष हैं| हमारे शब्दकोश भी तो लिपिबद्ध हैं । ऐसा न हो तो हम नहीं जान पाते कि शब्दभंडार के मानकीकरण पर खुला प्रकाश डाला गया है जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि इस भाषा के मानकीकरण पर खुला प्रकाश डाला गया है जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि इस भाषा के मानकीकरण का प्रश्न घनिष्ठता के साथ देवनागरी लिपि से जुड़ा हुआ है ।  


2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

मानकीकरण से क्या तात्पर्य है? कृपया स्पष्ट करें।

Unknown ने कहा…

Kb tk pura ho jaye ga sir