आज से मैंने पढना और लिखना छोड़ दिया
क्योंकि, अब वो किताब ही छपनी बंद हो गई
जिसे कभी मैं
हर दिन ५ से १० पन्ने कर के पढता था |
तब मैं एक विद्यार्थी के साथ साथ
एक कवि और लेखक बनना चाहता था,
अब भी, लेकिन मजबूर हूँ की
कहीं मैं भी उन लेखकों या कवियों
की तरह न बन जाऊं
जिन्हें बहुत कम ही लोग
पढना पसंद करते है |
मुझे ऐसा लगता है कि
या तो अच्छे लेखक नहीं रहें
या फि, मैं ही उन लेखकों के
छपे किताबों से दूर हो गया हूँ
शायद...
अब उस लाइब्रेरी में ऐसी कोई किताबें
नहीं
जिसे मेरे हाथ आगे बढ़कर
उठा ले
अब तो उन किताबों की जगह
या तो धूल पड़े मिलते है
या फिर कुछ ऐसी किताबें जिसे मेरी सोच
स्वीकार नहीं करती
महानगर के उन सभी लाइब्रेरी का चक्कर मार आता हूँ मगर
उनमे या तो रट्टे मारने वाले विद्यार्थी नजर आते है
या फिर नए नए उभरते कवि या लेखक |
जब कभी किसी कवि सम्मलेन या किसी संगोष्ठी
में जाता हूँ तो
वही सारा कुछ सुनने को मिलते है
जिसे बहुत कम ही लोग पसंद करते है
मगर उस मंच को देख सभी खामोश है |
अब आप लोगों को समझ में आ गया होगा कि
क्यों, मै इनमे शामिल नहीं होना चाहता |
मगर
ये सारा कुछ लिखने के बाद
मुझे कोई नहीं छोड़ेगा...
अब तो मै भी दिखूंगा उन सभी लाइब्रेरी में
सजे कुछ किताबों क बीच...