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शनिवार, मई 14, 2011

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की रचना "गीतान्जली" के कुछ काव्य अंशो का अनुवाद

"एक ऐसा समय जब मस्तिष्क में कोई डर नहीं रहता है और सिर तना हुआ होता है, जहाँ ज्ञान पर कोई दवाब नहीं वह बिलकुल स्वतंत्र होता है जहाँ विश्व को छोटी छोटी घर जैसी दीवारें खण्डों में विभाजित नहीं करती, जहाँ शब्दों में अटूट सच्चाई रहती है, जहाँ बाहें बिना थके और प्रयत्नशील रूप से खुद को पूर्णता की और फैलाती है जहाँ कोई साफ़ वजह भी सुनसान रेगिस्तान में अर्थहीन आदत के रेतों के बीच अपना रास्ता नहीं खोती, जहाँ दिमाग हमेशा के लिए तुम्हारे द्वारा आगे बढ़ना चाहता है -एक विस्तृत सोच और कार्य से | उस स्वतंत्र स्वर्ग में, मेरे पिता, हमारे देश को जागने दो...|

(नोट : रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की रचना "गीतान्जली" के कुछ काव्य अंशो का अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है...|)

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