समय बदल रहा है।
आकाश का रंग बदल रहा है।
धरती का आकार बदल रहा है।
मानवता का रंग बदल रहा है,
बस नहीं बदल रहा तो
मैं और तुम।
चिड़ियाँ जिस डाल पर बैठा करती थी,
वह डाल बदल रहा है
फूलों का रंग बदल रहा है।
हरियाली बदल रही है।
बहती नदी बदल रही है,
तालाब और झीलें बदल रही है।
बस नहीं बदल रहा तो मिट्टी का रंग।
समाज बदल रहा है,
रिश्ते बदल रहे हैं,
अपनो से अपनों की उम्मीदें बदल रही है,
बस नहीं बदल रहा तो सोचने का ढंग।
पर्वतों का आकार बदल रहा है।
वर्षा की गति बदल रही है,
दिन का ताप बदल रहा है।
पेड़ों की छाँव बदल रही है।
नहीं बदल रहा तो उसमें भीगने की चाह,
उस ताप से जलने का भय।
अंधा-धुंध सभी भाग रहे है,
अदृश्य अंधेरे की ओर,
जहाँ मिलने वाला कुछ नहीं,
खोने के सिवाय।
पर नहीं बदलेंगे लोग।
वजह है बस यही-
बस स्वार्थ नहीं बदल रहा,
बदल रहे हैं स्वार्थी !
इसी का डर था ।
आकाश का रंग बदल रहा है।
धरती का आकार बदल रहा है।
मानवता का रंग बदल रहा है,
बस नहीं बदल रहा तो
मैं और तुम।
चिड़ियाँ जिस डाल पर बैठा करती थी,
वह डाल बदल रहा है
फूलों का रंग बदल रहा है।
हरियाली बदल रही है।
बहती नदी बदल रही है,
तालाब और झीलें बदल रही है।
बस नहीं बदल रहा तो मिट्टी का रंग।
समाज बदल रहा है,
रिश्ते बदल रहे हैं,
अपनो से अपनों की उम्मीदें बदल रही है,
बस नहीं बदल रहा तो सोचने का ढंग।
पर्वतों का आकार बदल रहा है।
वर्षा की गति बदल रही है,
दिन का ताप बदल रहा है।
पेड़ों की छाँव बदल रही है।
नहीं बदल रहा तो उसमें भीगने की चाह,
उस ताप से जलने का भय।
अंधा-धुंध सभी भाग रहे है,
अदृश्य अंधेरे की ओर,
जहाँ मिलने वाला कुछ नहीं,
खोने के सिवाय।
पर नहीं बदलेंगे लोग।
वजह है बस यही-
बस स्वार्थ नहीं बदल रहा,
बदल रहे हैं स्वार्थी !
इसी का डर था ।
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