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शुक्रवार, मई 10, 2019

‘अहिंसा’ की तस्वीर


अहिंसा की तस्वीर
वक़्त है कुछ करने की
कहते तो सभी हैं,
अफसोस ! ज़िम्मेदारी आज
किसी कुर्सी के चार पायदानों की तरह मरी पड़ी है,
मगर खड़ी है चंद विश्वसनीय कंधों पर ।
एक कमरे की ये दास्तान
किसी असहाय व्यक्ति
से जुड़ी है ।
शासन और शासक के चंद चापलूस
किया करते हैं
दिन प्रतिदिन रोजगार का बंदोबस्त ।
म-हा-त्मा तस्वीर से देखते है सारा तमाशा !
अहिंसा को जहाँ उसने कभी
पीठ पीछे देखा था,
मगर आज इसे वो नाक पर देखते हैं ।
उनकी आत्मा जीवित होती
बशर्ते......... ।
हिंस..... हिंसा...... हिंस-आ.... हिं.....
से गूँज उठता है सारा
अतीत-
अहिंसा की तस्वीर
अब, वीरता की तकदीर
बनकर रह जाती है
और अहिंसा की पराजय
हिंसा का तमाचा
खाकर
टंगी की टंगी रह जाती है ।