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गुरुवार, मार्च 25, 2021

 हमारी गुड़िया


हँस दे तू
कुछ कह दे तू
कुछ ऐसे
अ ब द पा अ द म
साफ नहीं बस जैसे तैसे ।
कभी हाथ मेरा पकड़ती तू
कभी अकड़ कर बड़बड़ करती तू ।
माँ कहती पर न समझती तू
मत कर बेटा
अच्छी है तू
प्यारी और न्यारी है तू
पर नहीं सुनती और फिर हँसकर
मनमानी करती है तू ।
दिनभर तू थकाती हमको
पर नहीं सोती है तू ।
माँ फिर शिकायत करती
और पापा को देखकर हँसती है तू ।
कभी पेट के बल खेलती कभी कपड़े चबाती तू
हम समझाते और उठाकर गोद में लेते
फिर मुँह बनाती तू ।
माँ को देख किचन में फिर ओ ओ कर बुलाती तू
शाम को जब पापा लौटते
पापा को देख
हँसती और इठलाती तू
तू नन्ही सी गुड़िया है
हमारी गुड़िया है।
बिटिया 

उठती है सूरज के किरणों के साथ
हाथ हिलाती है
पैर फैलाती है
फिर पलटती है
और सुबह सुबह
हमें हँसाती है।
जैसे तैसे बारी बारी से पापा मम्मी काम निपटाते हैं।
सुबह की मालिश के बाद
सो जाती है।
उठती है फिर कुछ खाती है
खाने के लिए
पापा को खूब नचाती है।
माँ की गोद से लटकती है
और नाच देख मंद मंद मुस्काती है।
प्यार से नहाती है
पर कपड़े नहीं पहनने के लिए बहुत हाथ पैर हिलाती है।
मुँह में कुछ मिल जाए चबाने को
फिर बेहद खुश हो जाती है।
पर, पल भर में जोर जोर से चिल्लाती  है।
खेल खिलौना 

वो बैठी है
मेरे गोद में । 
उसे खेलना है
मेरे उँगलियों से। 
मैंने अंगूठे को हिलाया
उसे वो कसकर पकड़ ली ।
कनिष्ठा को देख हँस पड़ी
और अनामिका को अपने नन्हें मुट्ठी से जकड़ ली। 
मुझे देखकर
तर्जनी को हल्के से पकड़ी
फिर जोर से हँसी
और तभी मध्यमा की ओर झपटी ।
मुँह की लार ग्रंथिओं से भिगो दी
और फिर गोद से उछल पड़ी ।