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रविवार, जुलाई 10, 2011

तुम उदार बन सकते हो

तुम उदार बन सकते हो,
बस अपने पास आए गरीब को 
दो पैसे देकर
ज़माना महँगाई का है 
इतना तो सोचना ही पड़ेगा 
मगर अपने लिए नहीं...
लोग तरह तरह के पाठ
पढ़ाएंगे
अफ़सोस, तुम्हारे पास 
अनपढ़ होने का बहाना रहेगा |
कोई दो पैसे देकर उदार है तो कोई
चार पैसे...
हर रोज तुम्हे तुम्हारा जमीर  
एक ही बात कहेगा 
कल की अपेक्षा 
आज तुमने ज्यादा उदारता दिखाई,
कुछ लोग ऐसे मिलेंगे 
जिन्हें आभास तक नहीं इसका |
मगर तुम्हे 
उदारता के झोले में कभी
दो, कभी चार और कभी उससे भी ज्यादा डालना पड़ेगा |

 ( कलकत्ता नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति से प्रकाशित पत्रिका "स्वर्णिमा 2011" में प्रकाशित    ) 

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