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शनिवार, अप्रैल 23, 2011

किताब और विचार

कहने को तो मै किताबो से मन बहलाता हूँ ,
पर किसी ने मुझसे ये नहीं पूछा
कि क्या मै किताबों का गुलाम हूँ !
जब लोग ये पूछना शुरू करेंगे तो...
शायद किताबो के पन्ने पुराने हो चुके होंगे
तब उन्हें ये बात समझ आ जाएगी कि
काश... इसे पहले पढ़ लेता
तो आज मै भी और मेरे विचार भी
इन्ही किताबी पन्नो की तरह
मूल हो जाते
किताबों के पन्नों और विचारों में
सिर्फ इतना ही अंतर है कि,
पन्ने किताबों कि शोभा बढ़ाते है
तो विचार व्यक्तित्व की.
अब सवाल यह है कि
आप किसे चुनते है ?
अगर किताब के पन्नो पर दिल लगाते हैं तो
विचार बनते देर न लगेगी....