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सोमवार, दिसंबर 26, 2011

ख़ामोशी कैसी है ?

ख़ामोशी कैसी है ?
जैसे घने कुहासे से घिरी ट्रेन की पटरियाँ हो
और उसे देखता परेशां मुसाफिर...
यूँ कहें तो कड़ी ठंडक में कपकपाते होंटों की वो अद्भुत ध्वनि |
शांत और विरान जंगल में अदृश्य कीट-पतंगों की आवाज़...
किताबों के पन्नो की फर्रफराहट ,
कलम की नोख से स्याही की वो सुगबुगाहट...
कुछ ऐसा भी महसूस होता है |
बंद मुँह के खुलने से, होटों की बुदबुदाहट...
कुछ ऐसा भी...
पेड़ों से गिरते पत्तों की वो नि:शब्द आवाज़,
हवा के साथ बहने की सरसराहट..कुछ ऐसा हीं...

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