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सोमवार, दिसंबर 26, 2011

उसने मना नहीं किया...

उसने मना नहीं किया...
जब चाहा फूलों से खुशबू,
उसने मना नहीं किया...
कोमल पत्तियों को छूने की चाह,
उसने मना नहीं किया,
हर बार
हर बार
बिना किसी निमंत्रण के...
मुझे और मेरे आग्रह को ठोकर नहीं लगने दिया...
दिन के उजाले ने कभी अपनी रौशनी
देने से मना नहीं किया...
रात ने भी अँधेरे में परछाई बनने से मना नहीं किया...
सुबह की पहली किरण को भी फूटने से
किसी ने मना नहीं किया...
रात को सुनसान मैदान में
ओस की बूंदों को गिरने से
किसी ने मना नहीं किया...
बारिश में बड़े बड़े बूंदों ने
तन को भिगोया
उस वक़्त भी किसी ने मना नहीं किया...
जब कड़े धुप ने, इस मन को जलाया तब भी किसी ने मना नहीं किया...
सोया रहा जब अकेला कमरे में
उस अकेलेपन पर भी कोई
कुछ नहीं बोला...
बच्चे के मुस्कुराने पर
फिजाओं में फैलते हंसी पर किसी ने मना नहीं किया...
हर बार
हर बार
मैंने आजादी महसूस की
और उस आजादी पर भी किसी ने मना नहीं किया...

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