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सोमवार, दिसंबर 26, 2011

मुझे इंतजार है...

मुझे इंतजार है...उस मंजर का जहाँ हर शक्स के पास हंसने की वजह हो...
मुझे नकली हंसी वाले लोगों को नहीं देखना,
अब तो बिलकुल नहीं...क्योंकि,
समय काफी बीत गया,
मेरी मांग बहुत छोटी है,
मगर न जाने क्यों यह लोगों को बड़ी लगती है...
इससे मैं अपने इंतजार का गला नहीं घोंट सकता..
हरगिज नहीं,हर गली,
नुक्कड़ और मोहल्ले में उस शक्स को नहीं देखना,
जो नफरत को दबा कर,
हंसने का ढोंग करता हो...
सामने अपनापन और पीठ पीछे शत्रुता से दो सीढ़ी ऊपर उठकर
न दिखने का नाटक करता है,
इस मंच को अब नष्ट करना होगा,
और तभी यह इंतजार ख़त्म हो पायेगा...

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