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शनिवार, दिसंबर 04, 2010

इस डर को दफ़न करना बेहतर होगा...

कोई इंसान किस हद तक डर सकता है
अपने द्वारा लिए गए निर्णय से |
बात है अकेले की
कोई कितना भी दिमाग लगा ले
मगर वो सही होगा
इस बात की कोई फरमान नहीं |
हाँ! मै एक बात जरुर कहूँगा की
गलत निर्णय हमेशा इंसान को
ऐसे तथ्यों के बारे में भी सोचने पर मजबूर कर देगा
जिसे वो कभी दिवा स्वप्न में भी नहीं देखा होगा |

पर उस समय वो अच्छा नहीं,
कुछ उल्टा-पुल्टा ही सोचेगा
अगर वो दार्शनिक भी हुआ तो
किसी से सलह लेकर
संत अनुयायी तो बिलकुल नहीं बन पायेगा...
कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि
"दाता राम" कहने वाले ही सुख भोगते हैं |
मेरा इशारा डर के कारण आने वाले उल-जलूल ख्यालों से है |

मगर फिर हालत ऐसी हो जाएगी की
पानी का स्वाद भी फीका लगने लगेगा
और अगर डर के कारण...
जल जो जीवन है वो भी मन को तृप्त न कर पाए
तब तो, इस डर को दफ़न करना हीं होगा...





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