जब कभी मुझे ऐसा लगता है की दिशाएं अनुकूल है मेरे लिए तब मैं अच्छे काम करता हूँ और जब कुछ ऐसा महसूस होता है की मेरे अन्दर काफी अन्दर तक विवेकानंद, टैगौर, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष के विचार जागने लगे या फिर साहित्यकारों जैसे प्रेमचंद, प्रसाद, निराला, अगेये ,पन्त आदि के सोच मुझे सोचने पर मजबूर करने लगते हैं , तब मैं कुछ नहीं करता बस एक दार्शनिक का लिबाज़ धारण कर लेता हूँ...
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