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शनिवार, दिसंबर 04, 2010

चल रहा समय है

चल  रहा  समय है
चल रहा है मानव
एक अनजान पथ पर बढ़ रहा हूँ मै
चारो तरफ उजाले है
फिर भी, डर रहा हू मै

मुझे तो आगे बढ़ना है
गहन अंधेरों से गुजरना है
दृढ संकल्प है मेरे
फिर भी मन क्यों डरे ,

सोचता हूँ ये हर बार
डरता हूँ बार-बार 
कोई समझाए इसे
कोई बताये इसे
रास्ते है अनेक
बस, बढ़ते चल तू सचेत...

 निराशाओं के कड़े धूप है जरूर
मगर इससे तू क्यों डरे
दृढ संकल्प है तेरे
फिर क्यों तू थामे...
चल  रहा  समय है
चल रहा है मानव...

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