सागर के किनारे रहते
रेत के ढेर |
एक अलग ही सौन्दैर्य छिपा रहता उसमे |
कोई अपना नाम लिखता,
तो कोई अपना और अपने साथी का एक साथ ,
कोई अपने बिछड़े साथी का,
कोई अपने बेटे का,
तो कोई ऐसा भी होता,
जो कला के अलग-अलग रंग बिखेरता
उस रेत पर,
अफ़सोस...
जी हाँ अफ़सोस,
एक लहर
सारे सौंदर्य,रिश्ते नाते और कला
को अपना रूप देकर चला जाता
और फिर आता
और फिर जाता...
1 टिप्पणी:
shaandar
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