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रविवार, दिसंबर 19, 2010

सिफारिश


हवाओं ने आज साजिश कि है
घटाओं ने फिर से बारिश कि है
यूँ तो लग रहा था
मोहब्बत का आलम शुरू होने को है
मगर ये किसे पता था कि
किसी ने न्याय पर अन्याय कि
सिफारिश कि है |

कोई चिल्लाता रहा
कोई धीरे -धीरे बुलाता रहा |
टूटे पाँव किसी ने फरियाद कि है
जख्मी हाथ पर किसी ने वार कि है
उसे जल्लाद कहूं  या नादान
आज हर किसी के जेहन में
ऐसी बात हरकत की है |

खामोशियों से किसने दोस्ती की है
टूट जाने दो आज हर बंदिश को
जल जाने दो हरेक रंजिश को
न रहें दुश्मनी के तार
ख़ुशी है इस बात की
किसी ने तो इसकी मुखालफत कि है |

बंद दीवारों में रहनेवालों ने
आज चुप्पी तोड़ी है |
हो रहें जुल्म कि
झूठी तिजोरी लूटी है |
हर कोई जानता है
वो लुटेरा नहीं,
मगर अन्याय कि कलाई उसने मरोड़ी है |

उसे मालूम है वो शायर नहीं,
उसे मालूम है वो लेखक नहीं,
उसे मालूम है वो कवि भी नहीं,
तो उसने स्याह माँगा
ये बात आज खली है |
सादे कागज़ पे ये बात किसने लिखी ?
मुझे मालूम नहीं,
मगर हाँ किसी ने आज इंसान की
सिफारिश कि है |

गूंगे को  आज आवाज मिली,
लंगड़े को आज बैशाखी,
अंधे को रौशनी की आश
तो बेसहारे को सहारा का एहसास |
हर तरफ एक नयी उल्लास  कि गुलाल बिखरी है
किसी ने इस बात कि अफरातफरी की  है
मगर बात तय है किसी ने इसकी सिफारिश की  है...

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