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शनिवार, दिसंबर 04, 2010

दर्शन की बातें

एक लम्बे समय के बाद जब 
कोई मुझसे पूछता है 
क्या तुम वही हो, जिसने कल के अख़बार को
अपना नाम दिया था?

मै कुछ देर के लिए खामोश हो जाता हूँ
और सोचने लगता हूँ कि
शायद मैंने ठीक नहीं किया
अगर मुझे वैसा करना ही था तो
मुझे कुछ और करना चाहिए था !
पर मै क्या करता
औरो कि तरह मै भी दर्शन को समझने लगा था 
और मैंने वही किया , जो  एक संपादक को करना चाहिए,
तब मै समझ जाता हूँ कि
बोलने वाले तो तब तक  बोलेंगे 
जब तक वो भी ,
इस दर्शन के  भक्त न बन जाये...

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