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सोमवार, जून 03, 2024

शहर

एक शहर 

शहर जैसा नहीं।

यहाँ जो देखा 

और जो देखना बाकी है 

उसमें ज्यादा फ़र्क नहीं ।

कुछ भी नहीं इस शहर में

जिसे प्यार करूं ।

बेचैनी और एक अजीब सी घबराहट 

होती है इस शहर में 

रहकर ,

इसे देखकर ।

शहर को भी शहर 

रास नहीं आ रहा है।

एक खामोशी है ,

मगर चीखों से भरी ,

एक गूंज है बिना प्रतिध्वनि के ।

आत्मीयता गायब है इस शहर से।

वजूद की तलाश में गुमसुम है शहर ।

सफर में सफर का मज़ा नहीं ।

जो चमक थी चेहरों की ,

इस शहर के धूल ने 

वो भी गायब कर दी।

पेड़ गायब हैं शहर से,

जो बचे हैं 

वो भी धूल की चादर से खुद को बचाने

की कोशिश में लगे हैं।

पानी और हवा दोनों विषाक्त हैं।

एक शहर 

शहर जैसा नहीं ।

बड़ी बड़ी मिनारों ने 

शहर को नवाब बनाकर रखा है।

शुक्र है कुछ जागीर है 

इस शहर के पास ।

शहर को फर्क नहीं पड़ता 

उसे रेगिस्तान कहे या कुछ भी ।

गली, रास्तें, मोहल्ले हर जगह 

सन्नाटा है ।

बदतर हालत में शहर टंगी हुई है 

किसी प्रदर्शनी में।

मजबूरी और लाचारी इस शहर के आभूषण हैं।

शहर में तमीज और तहजीब के भाव भी बहुत सस्ते हैं ।

शहर से शहर दूर है,

हम शहर में होकर भी मजबूर है।

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